इंटरव्यू:जानवरों से टकराकर आगे का हिस्सा टूट जाए जानबूझकर बनाई ऐसी ट्रेन - STB Exam
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इंटरव्यू:जानवरों से टकराकर आगे का हिस्सा टूट जाए जानबूझकर बनाई ऐसी ट्रेन

इंडिया की सबसे एडवांस ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस सोमवार को एक बार फिर चर्चा में आई, जब इसे पहली बार एक महिला लोको पायलट ने चलाया। नाम है सुरेखा यादव। लेकिन सुरेखा के अलावा एक और नाम है, जिनका वंदे भारत एक्सप्रेस को देश का प्राइड बनाने में सबसे बड़ा योगदान है। ये नाम है, इस ट्रेन के क्रिएटर सुधांशु मणि।

दैनिक भास्कर की टीम सुधांशु के घर पहुंची। सबसे पहले हमारी मुलाकात उनकी पत्नी से हुई। वो बताती हैं कि करीब 15 साल पहले हम विदेश घूमने गए थे। हमारा बेटा भी साथ था। घूमते वक्त बेटे ने वहां एक खराब हालत वाली मालगाड़ी देखी। उसे देखते ही वो बोला, “पापा देखो, इंडिया जैसी ट्रेन।”

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वो कहती हैं, यह सुनते ही सुधांशु का मुंह देखने वाला था। रेलवे का कर्मचारी होने की वजह से उन्हें और दुख हुआ कि विदेश में चलने वाली खटारा मालगाड़ी हमारे देश की सबसे अच्छी ट्रेन जैसी थी। सुधांशु के मन में एडवांस ट्रेन का सपना पहले से ही था। लेकिन इस वाकये ने उन्हें और ट्रिगर कर दिया।

सवाल-1: आपके दिमाग ने मॉडर्न ट्रेन बनाने का आइडिया कैसे आया?
जवाब : मैं जब रेलवे में नहीं था, अपनी पढ़ाई कर रहा था। तभी से मैगजीन्स में अच्छी ट्रेनों की फोटो देखता, उनके बारे में पढ़ता था। मेरा सपना था कि हमारे देश में भी ऐसी टेक्नोलॉजी वाली ट्रेन आनी चाहिए। उसके बाद जब मैं रेलवे सर्विस में आया, तब भी सालों तक ये सपना अपने मन में रखा। क्योंकि, इसको पूरा करने का कोई जरिया मुझे नहीं दिख रहा था।

अपने रिटायरमेंट से करीब 2 साल पहले मैं इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई का जनरल मैनेजर बना। वो दुनिया की सबसे ज्यादा कोच बनाने वाली फैक्ट्री में से एक है। लेकिन, वहां भी सब उसी पुराने ढर्रे के कोच बन रहे थे। मगर, मेरे लिए ये एक मौका था और यहीं से मैंने अपने ड्रीम को पूरा करने का काम शुरू कर दिया।

सवाल-2: वंदे भारत का पूरा सफर कैसा था? क्या चैलेंज आए पहली ट्रेन बनाने में?

तस्वीर में सुधांशु मणि समेत पहली वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली पूरी टीम है।
तस्वीर में सुधांशु मणि समेत पहली वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली पूरी टीम है।

जवाब : अपने देश के लिए एक एडवांस ट्रेन बनाने का सपना थोड़ा आसान तब हो गया, जब मैंने अपनी टीम से बात की। यहां मुझे एक ऐसी टीम मिली, जिनके अंदर कुछ अलग करने का एक जुनून था। उन्हें अपने काम और टेक्नोलॉजी की अच्छी जानकारी थी। मुझे बस उनकी एनर्जी को और ताकत देकर सही दिशा में लगाना था।

हमने नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर एक ऐसी ट्रेन बनाना शुरू कर दिया, जिस पर पूरा देश गर्व कर पाए। लेकिन यहीं सबसे बड़ा चैलेंज आया, मिनिस्ट्री से अप्रूवल का। मेरी टीम ने कहा कि हम सब तैयार हैं, बस आप मंजूरी ले आइए। मुझे भी लगा कि ये काम तो बहुत आसान है।

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पर ऐसा था नहीं। अप्रूवल में कई दिक्कतें आने लगीं। सबको लगा कि हम ये सब पब्लिसिटी के लिए कर रहे। उन्हें लगा कि हम इतने काबिल ही नहीं हैं कि ऐसी ट्रेन बना पाएं। हर तरह से कोशिश करने के बाद भी काम नहीं हुआ। वहीं, ट्रेन विदेश से बनवाने की बात होने लगी।

थक-हार कर मैं रेलवे बोर्ड के चेयरमैन के पास पहुंचा। मैंने उनसे कहा कि आप ऐसी ट्रेन बाहर से जितने में इम्पोर्ट करेंगे, हम उसे एक तिहाई (1/3) लागत में आपको बनाकर दे देंगे। चेयरमैन साहब करीब 14 महीने बाद रिटायर होने वाले थे। इसलिए काम करवाने के लिए हमें उनसे एक झूठ बोलना पड़ा। हमने कहा कि ये ट्रेन उनके रिटायरमेंट से पहले बनकर तैयार हो जाएगी। इसका उद्घाटन हम उनसे ही करवाएंगे। जबकि हमको पता था कि इतने कम वक्त में ये काम पॉसिबल नहीं है।

इतना सब करने के बाद भी वो नहीं माने, तो मैंने उनके पैर पकड़ लिए। मैं बोला कि जब तक वो हमें इस प्रोजेक्ट के लिए अनुमति नहीं देंगे, मैं उनके पैर नहीं छोडूंगा। आखिरकार हमें इस ट्रेन को बनाने की अनुमति मिल गई। अप्रूव होते ही पूरी टीम ने इस पर काम शुरू कर दिया। एक प्रोजेक्ट था, इसलिए नाम देना था। तभी हमने नाम दिया “ट्रेन 18”। हमारी मेहनत तब सफल हुई, जब विदेश में 3 साल में बनने वाली ट्रेन हमने 18 महीने में बनाकर तैयार कर दी। बाद में इसको ‘वंदे भारत” नाम दिया गया।

सवाल-3: आप लोगों पर जांच बैठा दी गई। इसकी क्या वजह थी?
जवाब : मैं रिटायर होने वाला था, तो मेरे ऊपर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। लेकिन, मेरी टीम के साथियों को करियर में काफी नुकसान झेलना पड़ा। वजह ये कि रेलवे के ही कई लोग थे, जिन्हें पसंद नहीं आया कि उनके साथ की ही एक टीम ने ऐसी ट्रेन बना दी, जो वो नहीं बना पाए।

साथ ही मोदी जी ने भी जब इसकी तारीफ कर दी, तो मामला और बढ़ गया। उन लोगों को लगा कि ट्रेन को बदनाम करना है, तो उसकी टीम को बदनाम कर दिया जाए। इसलिए टीम पर जांच बैठा दी गई। हालांकि मुझे कोई डर नहीं था क्योंकि पता था कि कुछ गलत नहीं किया है। आखिर में जांच में कुछ नहीं मिला।

सवाल-4: ट्रेन जानवर से लड़कर टूट गई। क्या ट्रेन का सामने का हिस्सा इतना कमजोर था?
जवाब : ट्रेन इतनी सक्सेसफुल हो जाएगी और लोग इतना पसंद करेंगे, ये हमने नहीं सोचा था। इतनी पसंद की गई, तो कुछ होने पर ट्रोल होना भी लाजमी है।

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कई लोगों ने कहा कि ट्रेन में थर्माकोल लगाया गया है। तमाम तरह की बातें हुईं। इस पर मैंने हास्य में एक ब्लॉग लिखा था कि हमारे देश की ट्रेनें कमजोर नहीं हुई, बल्कि भैंसें मजबूत हो गई हैं। यह तो मजाक की बात थी। लेकिन, लोगों को मैं बताना चाहूंगा कि ट्रेन का आगे का हिस्सा जानबूझ कर ऐसा बनाया गया है।

बाकी ट्रेनों के आगे लोहे का एक काऊ कैचर लगा होता है। जो पटरी पर आए जानवर या इंसान को फोर्स से कुचल देता है। इससे कई बार ट्रेन के अंदर बैठे यात्रियों को खतरा हो सकता है। लेकिन वंदे भारत के आगे का शेप ऐसे डिजाइन किया गया है और उसमें ऐसे मटेरियल का इस्तेमाल किया गया है कि सामने आए जानवर को उठाकर साइड में पटक दे।

इसके साथ ही जानवर अगर अचानक सामने भी आ गया, तो आगे का हिस्सा पूरा फोर्स अपने ऊपर ले लेगा। यही वजह है कि वो हिस्सा टूट जाता है। इससे ड्राइवर तक को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा और पैसेंजर्स तो पूरी तरह से सेफ रहेंगे ही। हालांकि टूटे हुए हिस्से को बदलना बहुत आसान है। इसलिए अगले दिन ही ट्रेन दोबारा पटरी पर चलने लगती है।

सवाल-5: एवरेज स्पीड 160 किमी प्रति घंटा बोली गई थी, लेकिन बाद में ट्रेन सिर्फ 90 किमी की स्पीड से चल रही। तो अलग से ये ट्रेन बनाने का फायदा क्या है?
जवाब : जब पहली वंदे भारत चलाई गई, तो वह दिल्ली से वाराणसी 8 घंटे में कवर करती थी। एवरेज स्पीड लगभग 97 किलोमीटर थी। साथ ही राजधानी के मुकाबले करीब 10 घंटे बचा देती है। तो एक बहुत अच्छी शुरुआत हुई थी।

इसके बाद जहां-जहां ट्रेन चलाई गई, वहां उस रफ्तार पर ट्रेन नहीं चल पाई जितनी स्पीड के लिए वो बनाई गई थी। वजह ये कि ट्रैक्स की हालत ऐसी ट्रेनों के लिए बेहतर नहीं हैं। इसलिए आगे सरकार को इस पर भी काम करना चाहिए।

सवाल-6: 2026 तक 150 वंदे भारत और 2029 तक 500 वंदे भारत बनाने का प्लान था। अब ये प्लान कहां तक पहुंचा?
जवाब : जब मैं साल 2019 में रिटायर हुआ, तो दो ट्रेन बन चुकीं थीं। उसके बाद कोरोना की वजह से काम रुक गया। साल 2022 तक काम रुका रहा।

जब पीएम मोदी ने अपनी स्पीच में बार-बार ट्रेन का जिक्र करना शुरू किया, तब इसको बनाने में तेजी आई। उसके बाद से 8 ट्रेनें बन गईं। अब तक देश भर में 10 ट्रेन चल रही हैं। साथ ही 11वीं और 12वीं ट्रेन तैयार हैं।

हालांकि इतनी ट्रेनों का वादा करना गलत होगा। लेकिन आगे 4-5 साल में कम से कम 300 से 400 ऐसी ट्रेनें हमें देश भर में चलती नजर आएंगी। साथ ही इससे भारतीय रेलवे की पूरी तस्वीर भी बदल जाएगी।

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सवाल-7: यह मेड इन इंडिया ट्रेन है। तो क्या इसके सभी पार्ट्स भी भारत के ही हैं?
जवाब : जब भी हम कोई भी चीज बनाते हैं, तो उसको डिजाइन हम खुद करते हैं। उसको बनाने में जरूरत की चीजों को लिखा जाता है। ऐसे में कई बार होता है कि कुछ चीजें देश में ना मिलें। जैसे ट्रेन में लगे व्हील और उसकी सीट्स हमें बाहर से मांगनी पड़ीं। क्योंकि उस वक्त देश में सीट बनाने वाला कोई नहीं था।

साथ में ट्रेन में सुरक्षा के लिहाज से अलग तरह का दरवाजा लगा है, तो उसे भी बाहर से ही मंगाया गया है। लेकिन इसकी डिजाइन और टेक्नीक पूरी तरह मेड इन इंडिया है।

सवाल 8: लोग वंदे भारत को बुलेट ट्रेन से कम्पेयर कर रहे हैं। क्या ये ठीक है?
जवाब : सुधांशु शेक्सपियर की एक कहावत बोलते हैं, “A fool thinks he is a wise man but a wise man knows himself to be a fool” इसका मतलब है कि एक मूर्ख अपने आप को बुद्धिमान समझता है, लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं को मूर्ख मानकर काम करता है।

मैं तो ट्रेन बनाने वाला हूं। मेरा ये कहना कि हमने बुलेट ट्रेन का मुकाबला किया है, एक मूर्खता होगी। साल 1964 में जापान ने बुलेट ट्रेन शुरू की थी। करीब 60 साल से वो ट्रेन चला रहे, तो क्यों हम उनसे मुकाबला कर रहे। हम एक दिन वहां जरूर पहुंचेंगे, लेकिन झूठ बोल कर नहीं।

सवाल-9: अभी तक बनी 10 वंदे भारत में क्या कमियां हैं, जो आगे की ट्रेनों में ठीक करना चाहिए?
जवाब : वंदे भारत में इम्प्रूवमेंट का अभी बहुत स्कोप है। खासतौर पर इसके इंटीरियर और एक्सटीरियर को और फिनिशिंग की जरूरत है। वंदे भारत देश की ट्रेनों के मुकाबले तो बेहतर है। लेकिन, विदेश की ट्रेनों के मुकाबले इसमें कमियां हैं, जिन्हें सही करने की जरूरत है। साथ ही एक स्लीपर ट्रेन की भी जरूरत है। हम सभी ट्रेन दिन में नहीं चला सकते।

सवाल-10: आपका ‘ट्रेन 20’ नाम का एक प्रोजेक्ट था। उसका क्या हुआ?
जवाब : दुनिया में खासतौर पर यूरोप में एक नया ट्रेंड है कि स्टेनलेस स्टील की जगह एल्यूमीनियम की ट्रेन बनाई जाए। इसके कई कारण हैं। एक तो ये कि एल्यूमीनियम हल्का होता है, तो हाई स्पीड पर चलने में कम एनर्जी इस्तेमाल होगी। साथ ही एल्यूमीनियम ज्यादा वक्त चलता है।

इसी प्रोजेक्ट को हम लोगों ने ट्रेन 20 के नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसमें 15 ट्रेन ICF में बननी थीं। लेकिन कई वजहों से अब तक उस पर कुछ काम नहीं हुआ है। हालांकि एक दिन एल्यूमीनियम ट्रेन भारत में आनी ही हैं। इससे रेलवे के एक नए दौर की शुरुआत होगी।

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